आगरा के सबसे चर्चित पनवारी कांड में कोर्ट आज दोषियों को सजा सुनाएगी। बुधवार को थाना कागारौल में दर्ज मुकदमे में 34 साल बाद एससीएसटी कोर्ट ने 36 लोगों को दोषी माना था। 15 लोगों को बरी किया जा चुका है। 1990 से अब तक इस मामले में आरोपियों में से 27 की मौत हो चुकी है। जाटों और जाटवों में हुआ था तनाव
सिकंदरा थाने के गांव पनवारी में 21 जून 1990 में चोखेलाल जाटव की बेटी मुंद्रा की शादी थी। सदर के नगला पद्मा से रामदीन की बारात आई थी। आरोप है कि जाटों ने अपने घर के सामने बारात नहीं निकलने दी। इसी को लेकर हुई तनातनी ने दंगे का रूप ले लिया। दूसरे दिन यानी 22 जून को पुलिस ने अपनी मौजूदगी में बारात चढ़वाई, लेकिन 5-6 हजार लोगों की भीड़ ने बारात को घेर लिया था और चढ़ने से रोका था। इस दौरान पुलिस ने बल का प्रयोग किया था। फायरिंग की थी, जिसमे सोनी राम जाट की मौत हो गई थी। इस घटना पर पूरे आगरा में प्रतिक्रिया हुई। जाटव समाज के घर जला दिए गए। इस मामले में कई लोगों की मौत हुई थी। आगरा में 10 दिन के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया था। पुलिस के साथ सेना भी लगाई गई थी। घटना की हुई थी राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस घटना की राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी इस मामले में आगरा आए थे। भरतपुर से भी जाट आगरा पहुंचे थे। वर्तमान में फतेहपुरसीकरी से विधायक चौधरी बाबूलाल का नाम सबसे पहले इसी मामले में चर्चा में आया था। दंगा भड़कने से तत्कालीन जिलाधिकारी आगरा अमल कुमार वर्मा और एसएसपी कर्मवीर सिंह ने गांव में बैठकें की थीं। उस समय रामजीलाल सुमन केंद्रीय मंत्री थे। उन्होंने भी दलित बेटी की बारात चढ़वाने के लिए कोशिश की थी, लेकिन सभी लोग नाकाम साबित हुए थे। चौधरी बाबूलाल भी इसमें आरोपी थे। हालांकि 2022 में वे कोर्ट से बरी हो गए थे। सिकंदरा थाने में भी दर्ज हुआ था मुकदमा
इस मामले में 22 जून 1990 को सिकंदरा थाने में तत्कालीन थाना प्रभारी ने छह हजार अज्ञात लोगों के खिलाफ बलवा, जानलेवा हमला, एसएसी-एसटी एक्ट, लोक व्यवस्था भंग करने व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। मगर, घटनास्थल से किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई थी। इस मामले में विधायक चौधरी बाबूलाल भी आरोपी थे। जो 2022 में बरी हो गए थे। सिकंदरा थाने में दर्ज मुकदमे में 16 के खिलाफ हुई थी चार्जशीट
विवेचना के दौरान 18 लोगों के नाम प्रकाश में आए थे। इनमें से छह को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया था। घटना के दो वर्ष बाद पुलिस ने 16 आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट लगाई। 29 जनवरी 2000 में सभी आरोपितों के खिलाफ सत्र न्यायायल में आरोप तय हो गए। इसके बाद गवाही शुरू हुई थी। वादी इंस्पेक्टर, तत्कालीन एसएसपी करमवीर सिंह, तत्कालीन डीएम अमल कुमार वर्मा, तत्कालीन क्षेत्राधिकारी किशनलाल, तत्कालीन एसडीएम शांतिप्रकाश शर्मा समेत 21 गवाहों की गवाही हुई थी। 2010 में हुई थी अंतिम गवाही
22 फरवरी 2010 को अंतिम गवाह के रूप में नूर मोहम्मद की गवाही हुई थी। इसमें सपा नेता रामजीलाल सुमन, एडवोकेट करतार सिंह भारतीय और सुभाष भिलावली की भी गवाही हुई थी। विचारण के दौरान इन तीनों गवाहों ने अपनी गवाही में कहा कि घटना उनके सामने की नहीं है। इसके बाद 25 मार्च 2015 में आरोपितों को तलब करके उनके बयान भी हो गए। आठ आरोपियों विधायक चौ. बाबूलाल, मुन्नालाल, रामवीर, रूप सिंह, देवी सिंह, शिवराम सिंह, श्याम वीर सिंह, सत्यवीर का विचारण हुआ। अगस्त 2022 में विशेष न्यायाधीशी एमपी-एमएलए कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में आठों आरोपियों को दोषमुक्त करने का आदेश दिया था। तत्कालीन एसओ ने कराया था मौखिक मुकदमा
डीजीसी हेमंत दीक्षित ने बताया इसी मामले में थाना कागारौल में भी मुकदमा दर्ज हुआ था। उस समय के तत्कालीन एसओ ओमवीर सिंह राणा ने एक राहगीर की सूचना पर मौखिक मुकदमा दर्ज किया था। 1994 में मुकदमा ट्रायल पर आया था। 2017 में एससीएसटी कोर्ट बनी थी, तब यहां मुकदमा आया। इस मामले में 80 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई थी। 27 की मौत हो चुकी है। 53 जीवित थे। सुनवाई चली, जिसमें 28 मई को एससीएसटी कोर्ट ने एवीडेंस सुनने के बाद 36 लोगों को दोषी माना था। दोषियों के खिलाफ धारा 147, 148, 149 और 310 में मुकदमा दर्ज हुआ है। वकील ने बताया कि कोर्ट में घटना में चुटैल लोगों की गवाही मुख्य आधार बनी। इस मामले में अब तक 35 लोगों के बयान हुए हैं।