कासगंज के विकास भवन में गुरुवार को जिला गंगा समिति ने कृषि विभाग के साथ मिलकर "प्राकृतिक खेती" पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। भारत सरकार की नमामि गंगे परियोजना के तहत कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य किसानों को रासायनिक मुक्त और पर्यावरण अनुकूल खेती के प्रति जागरूक करना था। इसका लक्ष्य गंगा नदी के प्रदूषण नियंत्रण में किसानों की भागीदारी बढ़ाना भी था। कार्यशाला में विशेषज्ञों ने प्राकृतिक खेती के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जैविक खाद, गोमूत्र, जीवामृत और घनजीवामृत जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, जिससे फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार होता है। विशेषज्ञों ने यह भी स्पष्ट किया कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग मिट्टी और जल को प्रदूषित करता है, जिसका गंगा जैसी नदियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए, गंगा के संरक्षण के लिए प्राकृतिक खेती आवश्यक है। कार्यक्रम के दौरान डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के प्रतिनिधियों ने किसानों को 'अमृत पानी' बनाने की विधि सिखाई। उन्होंने इसके खेती में होने वाले लाभों के बारे में व्यावहारिक जानकारी दी। बताया गया कि यह मिश्रण फसलों की वृद्धि के साथ-साथ जल संरक्षण में भी सहायक है। इस कार्यशाला में मुख्य विकास अधिकारी सचिन, उप प्रभागीय वनाधिकारी संजीव कुमार, जिला परियोजना अधिकारी सुजीत कुमार, क्षेत्रीय वनाधिकारी यतिन सिंह, उप कृषि निदेशक महेन्द्र सिंह और जिला कृषि अधिकारी डॉ. अवधेश मिश्रा सहित कई अधिकारी उपस्थित रहे।