गोरखपुर के गांधी मैदान में मंचित भव्य रामलीला ने गुरुवार की शाम को दिव्यता और उत्साह से भर दिया। जैसे ही श्रीराम का अग्निबाण रावण की नाभि में लगा, राक्षसराज धराशायी हो गया। रावण ने श्रीराम को प्रणाम किया और अपने प्राण त्याग दिए। इस अद्भुत दृश्य के साथ ही मैदान ‘जय श्रीराम’ के नारों से गूंज उठा। रावण के पुतले के दहन ने वातावरण को ऊर्जा और श्रद्धा से भर दिया। दर्शक खुशी से झूम उठे, बच्चे ताली बजाते नजर आए और महिलाएं भक्ति गीतों में मग्न हो गईं। कच्ची बाग काली मंदिर से शुरू हुई रावण की यात्रा
कार्यक्रम की शुरुआत रावण की सेना के साथ कच्ची बाग काली मंदिर से विजय यज्ञ के पश्चात प्रस्थान से हुई। रथ पर सवार रावण और अहिरावण जब युद्ध के लिए गांधी मैदान पहुंचे तो ढोल-नगाड़ों और बैंड की धुनों से पूरा मार्ग गुंजायमान हो उठा। रथ, युद्ध और मंचन का सम्मिश्रण ऐसा था मानो त्रेता युग साक्षात उतर आया हो। युद्ध के हर दृश्य पर दर्शक तालियों और जयकारों से उत्साहवर्धन करते रहे। मैदान ‘जय श्रीराम’ के जयघोष से गूंज उठा
जैसे ही श्रीराम ने धनुष उठाया और अग्नि बाण छोड़ा, पूरा मैदान सांसें थामे उस पल को देखता रह गया। अग्नि बाण रावण की नाभि में लगते ही राक्षस राज धरती पर गिर पड़ा। रावण वध के बाद मंच- मैदान दोनों एक साथ गूंज उठे-“रामजी की सवारी, रामजी की लीला न्यारी…” वानर सेना ने मंच पर विजय नृत्य किया, जबकि भक्त भजनों की धुन पर झूमते नजर आए। लीला से पहले हुआ अहिरान्तक-नरान्तक वध
कार्यक्रम की सभी व्यवस्थाएं समिति के अध्यक्ष सरवन पटेल, संरक्षक मनीष पांडेय, महामंत्री चंदन अग्रहरि, मीडिया प्रभारी सूर्या श्रीवास्तव, दुर्गेश गुप्ता, संदीप चौधरी और गोविंद साहनी सहित अन्य सदस्यों द्वारा संभाली गईं। रावण वध से पहले अहिरान्तक और नरान्तक वध की लीलाएं भी मंचित की गईं, जिन्हें दर्शकों ने खूब सराहा। रावण वध के इस दृश्य ने न केवल दर्शकों को पौराणिक कथा से जोड़ा, बल्कि यह भी संदेश दिया कि अंततः अधर्म और अहंकार का अंत निश्चित है। गांधी मैदान देर रात तक जयकारों, भजनों और भक्तिमय उत्साह से सराबोर रहा।