लखनऊ के अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में महामंडलेश्वर स्वामी अभिनव शास्त्री महाराज ने श्रीमद् भागवत गीता का ज्ञान यज्ञ का प्रथम दिन का आयोजन हुआ। उन्होंने सरल भाषा में गीता के विभिन्न अध्यायों की व्याख्या की। महराज ने बताया कि गीता एक संपूर्ण जीवन दर्शन है। गीता का दूसरा अध्याय 'ज्ञान योग' जीवन की सच्चाई और विवेक सिखाता है। छठा अध्याय 'ध्यान योग' आत्मा को स्थिरता और शांति की ओर ले जाता है।उन्होंने तीसरे अध्याय 'कर्म योग' और चौथे अध्याय 'ज्ञान-कर्म-संन्यास योग' की विस्तार से कथा सुनाई। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में संतुलन जरूरी है। काम को समझदारी से और बिना मोह के करना चाहिए। ज्ञान तब पूर्ण होता जब वह अनुभव में आ जाए सातवें अध्याय 'ज्ञान विज्ञान योग' पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान तब पूर्ण होता है जब वह अनुभव में आ जाए। अनुभूत ज्ञान ही 'ज्ञान विज्ञान' कहलाता है।कार्यक्रम में सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे। सभी ने स्वामी जी की बातों को ध्यान से सुना। कार्यक्रम का माहौल शांत और भक्तिमय रहा। स्वामी जी ने अंत में कहा कि गीता को केवल पढ़ना ही नहीं, बल्कि उसके अनुसार जीना भी जरूरी है।