10 दिन की बाढ़ में फसल बर्बाद...15 गांव डूबे:50 हजार लोग फंसे, जानवर बदहाल; पानी में उतर जरूरी काम निपटा रहे

Aug 8, 2025 - 06:00
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10 दिन की बाढ़ में फसल बर्बाद...15 गांव डूबे:50 हजार लोग फंसे, जानवर बदहाल; पानी में उतर जरूरी काम निपटा रहे
‘हमारे पास 12 जानवर हैं। 4 दूध देते हैं इसलिए वह बाढ़ के बीच घर पर हैं बाकी सभी को घर से 4 किलोमीटर दूर एक बाग में रखा है। घर वाले जानवरों के लिए राशन सिर पर रखकर 7 किलोमीटर दूर से ला रहे हैं। क्योंकि बाढ़ के बीच गाड़ी चल नहीं रही है।’ यह कहना है संतराम यादव का। यही स्थिति प्रयागराज के कछार में सैकड़ों किसानों की है, जहां 10 लाख शहरी आबादी बाढ़ से प्रभावित है। वहीं, गांवों में भी इतनी ही आबादी बाढ़ से बुरी तरह परेशान है। कोई इलाज नहीं करवा पा रहा, तो कोई नौकरी पर नहीं जा पा रहा। हजारों जानवर प्रभावित हैं। बहुत सारे लोगों को इलाज तक नहीं मिल पा रहा। प्रशासन की तरफ से नाव की व्यवस्था तो हुई, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रही। दैनिक भास्कर की टीम प्रयागराज जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर इन इलाकों में पहुंची। यहां लोगों का हाल जाना। पढ़िए पूरी रिपोर्ट... मुख्य रास्तों पर 2 फीट से लेकर 5 फीट तक पानी भरा यूपी में प्रयागराज बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित है। जिले के कौड़िहार ब्लॉक का नरहा, दादनपुर, दानिशपुर, झिंगहा, सरांय, मुबारकपुर समेत 15 गांव बाढ़ की चपेट में हैं। यहां की आबादी करीब 50 हजार है। ये गांव टापू में तब्दील हो चुके हैं। यहां तक जाने के मुख्य रास्तों पर 2 से लेकर 5 फीट तक पानी भर गया है। यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती और पशुपालन है। यहां जितने लोग हैं, उससे 4 गुना जानवर हैं। ऐसे में जब पानी बढ़ रहा था, तभी लोग अपने जानवरों को लेकर घर से करीब 4 किलोमीटर दूर चले गए। गांव में महिलाएं और बुजुर्ग बचे हैं। करीब 2 फीट पानी के बीच से होकर हम गांव की तरफ पहुंचे। हमारी मुलाकात किसान लालजी पटेल से हुई। वह कहते हैं- 5 बीघा धान लगाया था, पूरा डूब गया। आगे 2-3 दिन ऐसा ही रहा, तो पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। अब अगर सरकार की तरफ से मुआवजा मिल जाएगा तो ठीक रहेगा। अगर नहीं मिलेगा, तो हम क्या ही कर सकते हैं। 8-10 बिस्वा खेत ऊपर है, उसी में खाने का हो जाएगा। पहले भी बाढ़ आती थी, लेकिन 1-2 दिन में पीछे हो जाती थी। मगर, अबकी बार एक हफ्ते से पानी ऐसे ही खेतों में है। स्टीमर वाले हमसे ही पेट्रोल मांगते हैं हम नरहा गांव की तरफ बढ़े। रास्ते में हमें मानिकचंद और कन्हैया लाल पटेल मिले। दोनों किसान हैं। मानिकचंद कहते हैं- फसल तो पूरी चली गई। घर के जो जानवर हैं, वो गांव से दूर हैं। सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली। जो पहले खाते थे, वही अब भी खा रहे हैं। यहां नाव की व्यवस्था होनी चाहिए थी, लेकिन वह नहीं है। पास बैठे कन्हैया लाल कहते हैं- बाढ़ से पूरा रहन-सहन गड़बड़ हो गया। यहां के लोग खेती के ही सहारे हैं, बाढ़ के बीच सब कुछ बर्बाद हो गया। अधिकारी आए और कहा कि 10 बोट की व्यवस्था की गई है, लेकिन आती सिर्फ एक है। हमारे यहां के प्रधान अधिकारियों से कहें कि और व्यवस्था करिए। तभी कुछ हो सकता है। लेकिन, वो तो दिखावे के चलते खुद ही पानी में उतरकर जा रहे हैं। कन्हैया लाल आगे कहते हैं- एक दिन स्टीमर आया। कुछ लोग दूसरी तरफ फंसे थे। उन्होंने कहा कि गांव चलना है। स्टीमर वाले ने कहा कि पेट्रोल नहीं है। सभी ने 10-20 रुपए जोड़कर उसमें पेट्रोल डलवाया। इसके बाद वो इधर आए। हमने पेट्रोल और सरकारी मदद के बारे में पूछा, तो उसका कहना है कि कुछ नहीं मिलता। ज्यादातर वक्त वह पता नहीं किन लोगों को बैठाकर घूमते रहते हैं। जबकि, स्टीमर इसलिए लगा कि वह गांव के लोगों को इधर से उधर उतार सके। बाढ़ खत्म होगी तो और दिक्कत बढ़ेगी पानी के बीच हमें जियालाल यादव मिले। वह बताते हैं- 15 गांव में जाने का यही मुख्य रास्ता है, लेकिन पूरी तरह से डूबा है। यहां के लोगों का मुख्य काम दूध का धंधा है। सभी के घर में 2-4 से ज्यादा जानवर हैं। इस वक्त जानवरों के लिए चारे की दिक्कत है, लेकिन आगे और दिक्कत बढ़ेगी। हमने नाव का सहारा लिया और दूसरे गांव की तरफ गए। यहां बहादुर साहू मिले। कहते हैं- यहां की क्या-क्या दिक्कत बताएं? बाढ़ आई, तो पूरी फसल खराब हो गई। जानवर 5 किलोमीटर दूर हाईवे पर बांधे हैं। वहां चारा देकर घर लौट रहे हैं। यहां से इसी नाव के जरिए फिर से चारा लेकर वहां जाएंगे। पानी घटा तो इलाज के लिए निकले लोग 30 साल की सुषमा बीमार हैं, लेकिन बाढ़ की वजह से इलाज के लिए घर से निकल नहीं सकीं। अब जब पानी कम हुआ, तो 2 फीट पानी के बीच जाती नजर आईं। कहती हैं- हम कई दिन से पानी कम होने का इंतजार कर रहे थे। आज थोड़ा कम हुआ, तो दवा लेने के लिए निकले हैं। सुषमा की तरह ही मानसिंह भी पैरों में पट्टी बांधे, हाथ में पैंट लिए जाते नजर आए। वह कहते हैं- यहां सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है। कोई बोट की सुविधा नहीं है। ऐसे ही लगातार पानी में उतरकर हम लोग जा रहे हैं। खाने की गाड़ी आते ही लोग टूट पड़े गांव से निकलकर हम उस जगह पर पहुंचे, जहां जानवरों के लिए सरकार की तरफ से व्यवस्था बनाई गई है। बड़ी संख्या में जानवर पेड़ों के नीचे खड़े मिले। यहां राम नरेश मिले। वह कहते हैं- यहां हम 5 दिन से हैं। हमारे पास 40 जानवर हैं। सरकार की तरफ से थोड़ा-बहुत सूखा चारा मिल जा रहा है। बाकी खाने-पीने को थोड़ा-बहुत मिल जा रहा। अब बाढ़ है तो क्या ही किया जा सकता है? ज्यादा बाढ़ आ गई, तो इधर आ गए। बाढ़ कम हो जाएगी, तो हम लोग वापस चले जाएंगे। यहीं हमें एक भैंस दर्द से कराहते हुए लेटी मिली। पास जाने पर पता चला कि बाढ़ में जब उसे लेकर आ रहे थे, तब उसका एक पैर गड्ढे में चला गया और वह टूट गया। इसके बाद 5 दिनों से वह ऐसे ही बैठी है। उठने का प्रयास करती है, लेकिन उठ नहीं पाती। सरकारी डॉक्टर उसका इलाज कर रहे हैं। लोगों से बातचीत हो रही थी, तभी एक गाड़ी आई। सारे लोग उधर जाने लगे। पता चला कि दोपहर में सरकार की तरफ से दाल-चावल की व्यवस्था है। यहां करीब 200 लोगों के लिए दाल-चावल बनकर प्रशासन की तरफ से आता है और वही बंटता है। लोग दबे स्वर में खाने की क्वालिटी को लेकर बात करते हैं। लेकिन, यह भी कहते हैं कि जो मिल जा रहा, वही सही है। बाढ़ खत्म हो जाए ,तो हम किसी तरह से अपने घर लौट जाएंगे। फिलहाल कछार में यह पहला मौका नहीं है, जब बाढ़ आई हो। हर दूसरे-तीसरे साल यहां के लोगों को इसी तरह की स्थिति से गुजरना पड़ता है। ये सारे गांव गंगा नदी के किनारे बसे हैं। इसलिए बाढ़ के अभ्यस्थ हो गए हैं। अपनी समस्याओं को बताते हुए यह भी कहते हैं कि ऊपर वाला जो चाहता है, वही होता है। ----------------------- ये खबर भी पढ़ें... घर डूबा तो गांव के बाहर तंबू लगाकर रहने लगे, प्रशासन की 2 पूड़ियों से भर रहे पेट ‘5 दिन से हम लोग गांव के बाहर यहीं तंबू लगाकर बच्चों के साथ रह रहे हैं। रोज सुबह-शाम 2 पूड़ी और सब्जी मिल जाती है। इतने में पेट नहीं भरता बाबू जी, लेकिन इतना ही मिलता है।’ ये शब्द फतेहपुर जिले की किसनमती के हैं। किसनमती घर छोड़कर अपने 4 बच्चों के साथ गांव के बाहर तंबू बनाकर रह रही हैं। पढ़ें पूरी खबर

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