जब छोटी थी, तब कभी सोचा भी नहीं था कि आगे चलकर डॉक्टर बनना है। जैसे-जैसे बड़ी हुई, घर पर मम्मी-पापा को काम करते देखा तो ये पता चला कि डॉक्टर के ऊपर मरीजों के इलाज की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। उनको नजदीक से मरीजों के लिए काम करते देखा। उनके समर्पण भाव को देखकर मैंने भी डॉक्टर बनने के बारे में सोचा। यह कहना है, KGMU के 21वें दीक्षांत में हीवेट गोल्ड मेडल पाने वाली तनुश्री सिंह का। उन्हें 6 गोल्ड मेडल समेत कुल 9 अवॉर्ड मिले हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत में तनुश्री ने बताया कि दीक्षांत समारोह में मंच पर गवर्नर आनंदी बेन पटेल और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के हाथों माता-पिता के साथ सम्मानित होना जीवन का बहुत बड़ा पल था। पढ़िए रिपोर्ट...। पढ़िए हीवेट गोल्ड मेडलिस्ट तनुश्री सिंह ने जो कहा... इंपॉसिबल को पॉसिबल करने वाले हैं डॉक्टर तनुश्री ने कहा- कन्वोकेशन में जेपी नड्डा जी ने कहा- इंपॉसिबल को पॉसिबल करने वाले हमारे डॉक्टर है। तो ये बहुत बड़ी बात है। ये हम सभी के सम्मान में उन्होंने कहा है। KGMU की कई सारी विशेषता सभी के सामने रखीं। ये हम सभी के लिए गर्व की बात है। बड़े पद पर बैठने के बाद भी बेटियों के लिए चिंतित राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को बेटियों की बहुत चिंता रहती है। बेटियों के मेडल पाने पर खुशी जताई और उनमें फैल रहे कैंसर को लेकर भी वो चिंतित थीं। ये दिखाता है कि इतने बड़े पद पर आसीन होने के बावजूद वो बेटियों के बारे में बहुत सोचती हैं। माता-पिता के डॉक्टर होने से नहीं था कोई प्रेशर परिवार में माता-पिता दोनों डॉक्टर होने पर थोड़ी उम्मीदें बढ़ जाती है। उस पर खरा उतरना जरूरी है। पर इसके फायदे बहुत होते हैं। ऐसे में उम्मीदों का बोझ खराब नहीं लगता। तनुश्री ने बताया कि पढ़ाई को लेकर पेरेंट्स की तरफ से कोई प्रेशर नहीं था। गाइडेंस जरूर मिलती थी पर जहां कहीं कंफ्यूजन होता था, वहां सपोर्ट भी मिलता था। माता और पिता दोनों में कौन ज्यादा बेहतर डॉक्टर के सवाल पर तनुश्री कहती हैं कि दोनों ही डॉक्टर हैं पर दोनों की कोई तुलना नहीं है। मां सर्जन हैं, जबकि पिता मेडिसिन के डॉक्टर हैं। अपने मरीजों का दोनों बखूबी इलाज करते हैं। आलसी होने का कोई चांस नहीं तनुश्री ने कहा- थ्योरिटिकल नॉलेज और मेडिकल फील्ड के एक्सपर्ट होने के अलावा डॉक्टर को कम्पैशनेट होने की जरूरत है। विनम्रता होना बहुत जरूरी है, उसकी लाइफ में डिसिप्लिन की भी बहुत आवश्यकता होती है। एक डॉक्टर के पास आलस्य होने का कोई चांस नहीं होता। अब पढ़िए...तनुश्री की मां और KGMU क्वीन मेरी की प्रोफेसर सुजाता देव ने जो कहा... बेटी की मॉनिटरिंग करती थी डॉ.सुजाता ने कहा- मेडिकल यूनिवर्सिटी में वर्किंग जरूर हूं पर आम पेरेंट्स की तरह से बेटी की मॉनिटरिंग करती थी। हर समय नरमी से काम नहीं चलता, कभी कभी पेरेंट्स को स्ट्रिक्ट भी होना पड़ता है। बच्चों को पढ़ने के लिए भी कहना पड़ता है। एक मां होने के नाते उसके पिता से थोड़ी ज्यादा स्ट्रिक्ट रहती थी। कोई प्रेशर देने की जरूरत कभी नहीं पड़ी। पढ़ाई के समय फोकस बहुत जरूरी है और उसके साथ ही पढ़ाई होनी चाहिए। पर हम दोनों ने बैलेंस बनाकर बेटी की परवरिश की। बचपन से पढ़ाई में लगता था मन बेटी ने पढ़ाई लोरेटो कान्वेंट स्कूल से की है। वो बचपन से ही पढ़ने वाली ही लड़की थी। शांत स्वभाव में ही रहती थी। स्कूल में टीचर यदि होम वर्क दे देते तो क्या मजाल कि ये उसे पूरा न करें। यही कारण था कि सभी टीचर उसे बहुत प्यार करते थे। वो एक समझदार स्टूडेंट थी। बेटा बड़ी बहन से सीख लेकर आगे बढ़ेगा डॉ.सुजाता ने कहा- बेटी से छोटे एक बेटा भी है। पर अभी वो छोटा है। 7वीं में पढ़ाई कर रहा और उम्मीद है कि बड़ी बहन से सीख लेकर वो भी जरूर सफलता हासिल करेगा।