राजस्थान में बाघों की नस्ल बदलने के लिए पहली बार मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व से बाघिन पीएन- 224 को बूंदी टाइगर रिजर्व लाया गया है। बाघिन 224 कुछ समय पहले ही अपनी मां से अलग होकर खुद की टेरिटरी बना रही थी। बाघिन ने 25 दिन तक 50 सदस्य फॉरेस्ट की टीम को छकाया। ट्रेंकुलाइज के एक दिन पहले टीम ने डॉट लगाया। लेकिन डॉट मिस हो गया बाघिन ओझल हो गई। उसी दिन AI ट्रेप कैमरा से लोकेशन मिली।अगले दिन चार हाथी दल ने बाघिन को घेर कर काबू किया। फिर सटीक व सुरक्षित तरीके से डॉट लगाकर ट्रेंकुलाइज किया। मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के सीसीएफ से भास्कर की बातचीत इंटर स्टेट ट्रांस लोकेशन अभियान में शामिल रहे मुकंदरा टाइटगर रिजर्व के सीसीएफ सुगनाराम जाट ने भास्कर से अपने अनुभव साझा किए। सुगनाराम जाट ने बताया कि बाघिन को लाने के लिए राजस्थान की टीम 26 नवंबर को पेंच के लिए रवाना हुई थी।
पेंच प्रशासन ने NTCA के मापदंड के अनुसार ऐसी बाघिन चिह्नित की थी। जिसकी उम्र 2 से 3 साल के बीच हो। जो अपनी मां से कुछ समय पहले ही अलग हुई हो। और अपनी टेरिटरी बना रही हो। पेंच प्रशासन ने दो तीन फीमेल को चिह्नित किया था। 28 नवंबर से जॉइंट टीम ने पीएन 224 की सर्चिंग शुरू की। कैमरा ट्रैप लगाया गया। हाथी दल, फील्ड टीम ने गहन अभियान शुरू किया। करीब 50 लोगों की टीम सुबह 6 बजे से अंधेरा होने तक जंगल मे बाघिन की तलाश में जुटी रही। 5 दिसंबर को बाघिन की लोकेशन मिली। उसे ट्रेंकुलाइज कर रेडियो कॉलर पहनाया। पर उसका कॉलर स्लिप हो गया। बाघिन फिर से ओझल हो गई। इसके बाद अभियान को ब्रेक दिया। कुछ दिन बाद अभियान को फिर शुरू किया। इस दौरान टीम जंगल में सर्च करती रही। 12 दिसंबर को सर्चिंग अभियान तेज किया गया। टीमें सुबह 6 बजे से अंधेरा होने तक बाघिन की तलाश में जुटी रही। 20 दिसंबर को AI कैमरा से बाघिन की लोकेशन मिली। उसी इनपुट पर सुबह टीम मौके पर पहुंची। सबसे पहले 2 एलिफेंट स्क्वॉड (हाथी दल) पहुंचा। उन्होंने बाघिन को आसपास लोकेट करने की कोशिश की। वो कामयाब भी हो गए। हाथी दल ने बाघिन की घेरा बंदी भी की। हाथियों पर वेटरनरी डॉक्टर की टीम थी। बाघिन काफी एग्रेसिव व काफी सतर्क रह रही थी। वो भी अपने आप को बचाते हुए इधर उधर मूव कर रही थी। बाघिन मौका नहीं दे रही थी। शाम 3-4 बजे के आसपास डॉट लगाया। उनके एक दो डॉट बेकार गए। उस दिन टीम वापस लौट आई। अगले दिन नई प्लांनिग के साथ मौके पर पहुंचे। इस बार दो की जगह चार हाथी स्क्वायड की मदद ली गई। चारो हाथियों पर ट्रेंकुलाइज टीम (वेटरनरी डॉक्टर्स) को बैठाया। टीम ने सुबह 6 बजे से अभियान शुरू किया। दोपहर तीन बजे तक बाघिन टीम को छकाती रही। आखिर में चार हाथियों के दल ने बाघिन को घेर कर काबू किया। उसके मूवमेंट के लिए जगह नहीं छोड़ी। फिर टीम ने मौका देख सुरक्षित व सटीक तरीके से डॉट लगाकर बाघिन को ट्रेंकुलाइज किया। उन्होंने बताया कि इस तरह का अभियान काफी लर्निंग वाला होता है। इसमें काफी चुनौतियां रहती है। जैसे ग्राउंड पर टाइगर के बिहेवियर को समझना। 20 दिसंबर को हमें लगा कि टाइगर को डॉट हो गया है। लेकिन वह हल्का मिस हुआ था। पर हमें पता नहीं लगा। जैसे डॉट लगता है जानवर कहीं ना कहीं छिपाने की कोशिश करता है। 20 से 25 मिनट बाद वो डाउन होने लगता है। उस गोल्डन टाइम में टाइगर को लॉकेट करना बहुत जरूरी रहता है। उस दौरान हम सर्च कर रहे थे, उसके पास पहुंचने की कोशिश कर रहे थे। हमें हमेशा सरप्राइस पता लगा की टाइगर के कुछ इफेक्ट ही नहीं था। डॉट उसकी बॉडी में इंजेक्ट हुआ ही नहीं। भगवान का शुक्र रहा ग्राउंड टीम में किसी को कुछ नहीं हुआ। वो हमारे लिए लर्निंग लेसन था कि हमें ग्राउंड पर बड़ा सतर्क रहकर काम करना है। हमें हमें बड़ी सावधानी से सारी चीज करनी चाहिए। ये जानना बहुत जरूरी है कि एनिमल को डॉट लगा या नहीं, बॉडी में इंजेक्ट हुआ या नहीं। एनिमल डाउन हो रहा है या नहीं। सुगनाराम ने बताया कि टाइगर की टेरिटरी प्राकृतिक वन क्षेत्र में होता है। जहां नाले, ऊबड़ खाबड़ पहाड़ियां होती हैं। घना जंगल,झाड़ियां होती हैं। इन परिस्थितियों में टाइगर को सर्च करना काफी चुनौती वाला काम होता है। क्योंकि टाइगर इन परिस्थितियों से वाकिफ होते हैं। उसको पहले ही आभास हो जाता है। और वो जगह बदल लेता है। इस काम में टेक्नोलॉजी की मदद लेनी पड़ती है। ताकि उसके मूवमेंट का पता लगाया जा सकें। पेंच प्रशासन टाइगर को ट्रेंकुलाइज करने में हाथियों की मदद ले रहा था। ये काफी डिफिकल्ट रहता है। सीसीएफ ने बताया कि इंटर स्टेट टाइगर ट्रांस लोकेशन मुख्य उद्देश्य टाइगर की पॉपुलेशन में जेनेटिक बेस को इंप्रूव करना है। दूसरा एक वायबल पॉपुलेशन एस्टेब्लिश (विलुप्त होने से बचाना) कर सके। सेंट्रल इंडिया की साइंटिफिक स्टडी कहती है टाइगर रिजर्व के बीच में काफी कॉरिडोर व कनेक्टिविटी अच्छी है तो उनके जेनेटिक बेस काफी ब्रॉड हैं। इससे हमारे यहां का जेनेटिक बेस बढ़ेगा। टाइग्रेस के एस्टेब्लिश होने व ब्रीड करने पर निश्चित रूप से आने वाले दिनों में अच्छे परिणाम आएंगे। हालांकि अभी ये कहना बहुत जल्दबाजी होगा।इंटर स्टेट टाइगर ट्रांस लोकेशन का 2018 में उड़ीसा में प्रयास किया गया था। किन्ही कारणों से उसमें सफलता नहीं मिली। राजस्थान के मायनों में यह पहली बार है कि दूसरे प्रदेश से टाइगर की शिफ्टिंग हुई है। राज्य के अंदर तो 2008 में रणथंभौर से सरिस्का में टाइगर शिफ्ट कर चुके हैं। बाघिन को बूंदी के रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के सॉफ्ट एनक्लोजर में रखा है। फॉरेस्ट की टीम 24 घंटे बाघिन की मॉनिटरिंग कर रही है। वो नए वातावरण में कैसे एडजेस्ट करती है, उसके हेल्थ स्टेटस क्या है,उसका व्यवहार कैसा है। सब पर नजर रखे हुए है। वेटनरी एक्सपर्ट भी लगातार मॉनिटरिंग करते रहेंगे। कुछ समय बाद सॉफ्ट एनक्लोजर से हार्ड एनक्लोजर में रिलीज करेंगे। इस पूरे अभियान में राजस्थान व एम्पी की 100 सदस्य से ज्यादा की टीम लगातार लगी रही। बूंदी पुलिस परेड ग्राउंड व रामगढ़ रिजर्व के बजलिया में अस्थाई हेलीपेड बनाया गया। ये खबर भी पढ़े- राजस्थान-बदलेगी बाघों की नस्ल, पहली बार MP से लाए बाघिन:सेना के हेलिकॉप्टर से जयपुर पहुंची, बूंदी के रामगढ़ विषधारी रिजर्व में छोड़ा राजस्थान के बाघों की नस्ल बदलने के लिए पहली बार मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व से बाघिन को लाया गया है। रविवार रात 10.30 बजे सेना का MI-17 हेलिकॉप्टर 3 वर्ष की बाघिन 'पीएन-224' को लेकर जयपुर एयरपोर्ट पहुंचा। एक्सपर्ट का दावा है कि इंटर स्टेट हवाई ट्रांसफर का यह पहला मामला है। जयपुर से सड़क मार्ग से टाइग्रेस को बूंदी के रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व ले जाया गया। सोमवार सुबह 6.30 बजे उसे एनक्लोजर में छोड़ा गया। खबर पढ़े