इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दाखिल शपथपत्र में अधूरी जानकारी पर नाराजगी व्यक्त की। न्यायालय ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को अगली सुनवाई पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित होने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर को होगी। न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि राज्य सरकार के बजाय निचले स्तर के अधिकारियों द्वारा जवाबी शपथपत्र दाखिल करने पर अक्सर ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। कोर्ट ने निदेशक माध्यमिक शिक्षा को व्यक्तिगत शपथपत्र दाखिल करने का भी निर्देश दिया है। यह आदेश श्रीमती पूर्णिमा शुक्ला की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया गया है। याचिका में प्रतापगढ़ जिले के एक अनुदानित विद्यालय की प्रबंध समिति पर मनमाने ढंग से अपने परिजनों की नियुक्ति करने और नियमों की अनदेखी करने का आरोप लगाया गया है। याचिका में विद्यालय की अनुदान राशि रोकने की भी मांग की गई है। दाखिल जवाबी शपथपत्र में यह स्वीकार किया गया है कि प्रबंध समिति के सदस्य आपस में घनिष्ठ संबंधी हैं। उन्होंने प्रधानाचार्य और सहायक अध्यापकों को हटाकर अपने परिजनों की नियुक्तियां की हैं। शपथपत्र में यह भी बताया गया कि ये नियुक्तियां नियमों के विपरीत की गई थीं, न तो पूर्व अनुमति ली गई और न ही रिक्तियों का प्रकाशन समाचार पत्रों में किया गया। बताया गया कि डीआईओएस, प्रतापगढ़ द्वारा एडीआईओएस से जांच कराई गई थी, जिसकी रिपोर्ट 4 जून 2011 को प्रस्तुत की गई। इसके बाद डीआईओएस ने रिपोर्ट को उप निदेशक, शिक्षा, प्रयागराज को प्रेषित किया। हालांकि, न्यायालय ने पाया कि इसके आगे क्या कार्रवाई की गई, इसका कोई विवरण उक्त जवाबी शपथपत्र में नहीं दिया गया है, जिस पर कोर्ट ने असंतोष व्यक्त किया।