उत्तराखंड के पहाड़ों में अब सेब की जगह कीवी की बागवानी तेजी से फैल रही है। रामगढ़, मुक्तेश्वर, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जैसी फल पट्टियों में किसानों के लिए कीवी नई उम्मीद बन गई है। एक हेक्टेयर में कीवी की खेती करने वाला किसान सालाना 20 से 25 लाख रुपए तक की कमाई कर रहा है। राज्य सरकार की नई कीवी बागवानी नीति-2025 ने इस बदलाव को और गति दी है। किसानों को 70% तक सब्सिडी दी जा रही है, जिससे नई पौध और ढांचा तैयार करने में बड़ी मदद मिल रही है। यही वजह है कि जो किसान अब तक सेब, आड़ू और माल्टे पर निर्भर थे, वे कीवी की खेती की ओर रुख कर रहे हैं। फिलहाल उत्तराखंड में 682.66 हेक्टेयर क्षेत्र में कीवी की खेती हो रही है, जिससे 381.80 मीट्रिक टन उत्पादन निकल रहा है। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक इसे 3500 हेक्टेयर तक बढ़ाया जाए। यही वजह है कि इस फल को राज्य की पहाड़ी अर्थव्यवस्था के लिए नया ‘गेम चेंजर’ माना जा रहा है। पहले जानिए सेब की जगह क्यों ले रहा कीवी... उत्तराखंड में दशकों तक कुमाऊं और गढ़वाल के ऊंचे इलाकों में सेब की बागवानी होती रही। लेकिन शोध, नई प्रजातियों और संसाधनों के अभाव में उत्तराखंड का सेब हिमाचल की टक्कर नहीं ले पाया। हिमाचल ने सेब की उन्नत नस्लें विकसित कीं और विपणन तंत्र मजबूत किया, जबकि उत्तराखंड उस स्तर तक नहीं पहुंच सका। अब कीवी किसानों के लिए बेहतर विकल्प बन रही है। इसकी खेती में कम जोखिम है, खाद और कीटनाशक की जरूरत भी बहुत कम होती है। सबसे अहम बात- कीवी को बंदर या अन्य जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते क्योंकि फल में महीन रोएं होते हैं, जिससे किसान बागों की सुरक्षा को लेकर निश्चिंत रहते हैं। ठंडा मौसम किवी के लिए उपयुक्त उत्तराखंड में फिलहाल 682.66 हेक्टेयर भूमि पर कीवी की बागवानी हो रही है। लेकिन बागवानी विभाग के मुताबिक, अगले कुछ वर्षों में यह क्षेत्र और बढ़ेगा क्योंकि किसानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है। पहाड़ों के ठंडे मौसम और ऊंचाई वाले इलाके कीवी के लिए बेहद उपयुक्त माने जा रहे हैं। अब समझिए क्या है नई कीवी नीति 2025 राज्य सरकार ने कीवी बागवानी नीति 2025 लागू की है, जो 6 साल तक यानी 2031 तक प्रभावी रहेगी। इस नीति के तहत किसानों को 70% तक सब्सिडी मिलेगी। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक राज्य में 3500 हेक्टेयर भूमि पर कीवी की खेती शुरू हो। वर्तमान में राज्य में 682.66 हेक्टेयर में कीवी की खेती हो रही है, जिससे 381.80 मीट्रिक टन उत्पादन हो रहा है। सब्सिडी योजना के तहत प्रति एकड़ 12 लाख की लागत पर 70% तक सहायता मिलेगी, बाकी 30% राशि किसान को लगानी होगी। नीति में यह भी प्रावधान है कि व्यक्तिगत किसान 0.04 से 1 हेक्टेयर, जबकि सहकारी समिति या समूह किसान 5 हेक्टेयर तक खेती के लिए अनुदान ले सकते हैं। चयन जनपद स्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा। इसके लिए 11 जिलों के कई ब्लॉकों को चुना गया है। अब कीवी की खेती के बारे में जानिए...
पौधों की बनावट और उत्पादन चक्र कीवी के नर और मादा पौधे अलग-अलग होते हैं। अच्छे उत्पादन के लिए हर पांच मादा पौधों के साथ एक नर पौधा लगाया जाता है। ग्राफ़्टेड पौधे 3 से 4 साल में फल देना शुरू कर देते हैं। अप्रैल-मई में फूल आते हैं और नवंबर तक फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। यह बागवानी उन्हीं क्षेत्रों में सफल होती है जहां तापमान शून्य से नीचे और बर्फबारी 30 दिन से अधिक हो। पोषण और स्वास्थ्य के लिए वरदान कीवी में विटामिन B और C, फॉस्फोरस, पोटाश और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होते हैं। यह फल एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। प्लेटलेट्स बढ़ाने और नींद सुधारने में भी यह बेहद फायदेमंद है। विशेषज्ञों के अनुसार कीवी का नियमित सेवन शरीर को संक्रमणों और मौसमी बीमारियों से बचाता है।