मिर्जापुर के करजी गांव के आलोक और प्रतिभा का इकलौता बेटा विनायक 13 महीने का है। दिल्ली AIIMS के डॉक्टरों ने कहा कि उसे 9 करोड़ का एक इंजेक्शन नहीं लगा, तो अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता। विनायक को स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) नाम की दुर्लभ बीमारी है। यह बीमारी 10 लाख बच्चों में से किसी एक को होती है। विनायक को देखकर माता-पिता सिर्फ रो लेते हैं। दोनों घर का खर्च ही मुश्किल से चला पाते हैं, फिर 9 करोड़ कहां से लाएं। वह मदद के लिए अपील कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) क्या होती है? क्या यह इंजेक्शन लगने के बाद बच्चे की जान बच सकती है? यह इंजेक्शन इतना महंगा क्यों है? अब तक भारत में कितने बच्चों को यह इंजेक्शन लगाया जा चुका? क्या सरकार मदद करती है? भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए इन सारे सवालों के जवाब… पहले पढ़िए मैनपुरी का केस फरवरी, 2025 में मैनपुरी के माधुपुरी गांव के एयरफोर्स कर्मी प्रशांत यादव की 13 महीने की बेटी जैशवी को SMA जैसी दुर्लभ बीमारी थी। इलाज के लिए अमेरिका से 14 करोड़ का जोलगेंस्मा (Zolgensma) इंजेक्शन मंगाना था, जिसे एक साल के भीतर लगाना जरूरी था। क्राउड-फंडिंग और मेडिकल सपोर्ट की मदद से दवा उपलब्ध हुई। फिर कंपनी ने कीमत घटाकर 9 करोड़ कर दी। एम्स की टीम की देख-रेख में जैशवी को इंजेक्शन लगाया गया और उसकी हालत में सुधार हुआ। सवाल: स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) क्या होती है? जवाब: बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर के पीडियाट्रिक्स विभाग के डॉ. भूपेंद्र शर्मा बताते हैं- SMA एक दुर्लभ न्यूरो-मस्क्यूलर जेनेटिक बीमारी है। इसमें बच्चे की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं। दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड से मसल्स तक जाने वाले सिग्नल कम हो जाते हैं। इस बीमारी में स्पाइनल कॉर्ड की मोटर नर्व सेल्स डैमेज होने लगती हैं। दिमाग मसल्स को हिलाने-डुलाने के लिए संदेश भेज नहीं पाता। इसलिए बच्चा शरीर पर कंट्रोल खोने लगता है। शुरुआत में हाथ-पैर और शरीर हिलाने में कमजोरी दिखती है। लेकिन, समय के साथ बच्चा बैठना-चलना, यहां तक कि सांस लेना और निगलना भी मुश्किल हो सकता है। इस बीमारी के चलते शरीर की मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है। गंभीर स्थिति में लकवा या मौत भी हो जाती है। सवाल: ऐसा क्यों होता है? जवाब: SMA एक जेनेटिक बीमारी है, जो माता-पिता से बच्चे में जाती है। अगर माता-पिता के जीन में गड़बड़ी हो, तो यह अगली पीढ़ी में पहुंच सकती है। अभी तक इसका स्थायी इलाज नहीं है। लेकिन, कुछ दवाएं और थेरेपी बीमारी की प्रोग्रेस धीमी कर सकती हैं और लाइफ क्वालिटी बेहतर करती हैं। सवाल: जोलगेंस्मा (Zolgensma) क्या है? जवाब: जोलगेंस्मा एक जीन-थेरेपी आधारित दवा है। जिसे स्विस फार्मा कंपनी नोवार्टिस ने स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के इलाज के लिए विकसित किया है। यह दवा 2 साल से कम उम्र के बच्चों को दी जाती है। जोलगेंस्मा शरीर में एक स्वस्थ SMN जीन की कॉपी पहुंचाती है। इससे मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली मोटर न्यूरॉन कोशिकाएं ठीक से काम करने लगती हैं। इसे एक बार में लगभग 1 घंटे की इन्फ्यूजन के रूप में दिया जाता है, बार-बार लेने की जरूरत नहीं होती। सवाल: इतना महंगा क्यों है ये इंजेक्शन? जवाब: सवाल: कैसे काम करता है यह इंजेक्शन? जवाब: स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी जिस जीन की खराबी के कारण होती है, जोलगेंस्मा इंजेक्शन उसे नए जीन से रिप्लेस करता है। ऐसा होने के बाद शरीर में दोबारा यह बीमारी नहीं होती, क्योंकि बच्चे के DNA में नया जीन शामिल हो जाता है। सवाल: जोलगेंस्मा का इंजेक्शन विकल्प क्या है? जवाब: ड्रग डॉटकॉम वेबसाइट के मुताबिक, जोलगेंस्मा का इंजेक्शन एक विकल्प है Spinraza। इसे एक साल में 4 बार लगवाया जाता है। पहले साल इसके लिए करीब 5 करोड़ रुपए चुकाने पड़ते हैं। इसके बाद हर साल करीब 2 करोड़ रुपए के इंजेक्शन लगते हैं, जो ताउम्र लगते हैं। सवाल: ये इंजेक्शन कितने लोगों को भारत में लगाया जा चुका? जवाब: मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस इंजेक्शन को भारत में 90 से अधिक बच्चों को दिया जा चुका है। यह भी तब, जब इसे बीमारी को पूरी तरह ठीक करने के लिए उपयुक्त भी नहीं माना जा रहा। एक्सपर्ट की मानें, तो अगर इस इंजेक्शन को सही समय पर लगा दिया गया तो बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है। पश्चिमी देशों में एसएमए की वजह बनने वाले जीन 50 में से एक व्यक्ति में हैं। लेकिन, भारत में यह 38 में से एक व्यक्ति में ये मिले हैं। वहीं, उत्तर भारत में हुए एक अध्ययन में इसे 30 में से 1 बताया गया है। लेकिन, दुनिया भर में हर 10 हजार में 1 बच्चा एसएमए के साथ जन्म ले रहा है, जो चिंताजनक है। यह शिशु मृत्यु दर की बड़ी वजह भी है। सवाल: सरकार की तरफ से कितनी मदद मिलती है? जवाब: मोस्टली केसेज में क्राउड-फंडिंग के जरिए पैसे जुटाए जाते है। साथ ही सरकार से मदद मांगी जाती है। हालांकि, दुर्लभ रोगों के लिए समर्पित “राष्ट्रीय कोष” (National Fund for Rare Diseases) भी बनाया गया है। लेकिन, इसके दायरे और बजट सीमित हैं। केंद्र सरकार का भी मानना है कि SMA जैसे इलाज सबको मुफ्त देना संभव नहीं। सरकार ने कहा कि देश में लगभग 3,500 SMA पीड़ित बच्चों के लिए अप्रमाणित जीन थेरेपी उपलब्ध कराने पर हर साल 35 से 40 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा, जो व्यावहारिक नहीं। हालांकि, केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि दुनिया के किसी भी देश में SMA के लिए पूरी तरह मुफ्त जीन थेरेपी उपलब्ध नहीं है। विशेषज्ञ इसे अभी चिकित्सकीय रूप से पूरी तरह प्रमाणित और प्रभावी नहीं मानते। -------------------------- ये खबर भी पढ़ें... 14 साल बाद होमगार्ड के पदों पर होगी भर्ती, हर दिन लगती है ड्यूटी, सिलेक्शन के बाद कितनी मिलेगी सैलरी? यूपी में 41 हजार से ज्यादा होमगार्ड पदों पर भर्ती शुरू होने जा रही है। सरकार ने इसका आदेश जारी करते हुए यूपी पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड को प्रक्रिया शुरू करने की जिम्मेदारी सौंपी है। प्रमुख सचिव होमगार्ड राजेश कुमार सिंह के अनुसार, जिलों से खाली पदों की डिटेल मिलने के बाद एनरोलमेंट (रजिस्ट्रेशन) की प्रक्रिया शुरू होगी। इसके बाद लिखित परीक्षा होगी और मेरिट के आधार पर सिलेक्शन किया जाएगा। पढ़िए पूरी खबर...