गैंग पर शिकंजा:सबसे बड़े साइबर ठग; बेंगलुरु में कंपनी, थाईलैंड-कंबोडिया तक नेटवर्क

Jul 6, 2025 - 07:00
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गैंग पर शिकंजा:सबसे बड़े साइबर ठग; बेंगलुरु में कंपनी, थाईलैंड-कंबोडिया तक नेटवर्क
साइबर फ्रॉड करने वाला देश का सबसे बड़ा गिरोह पुलिस की पकड़ में आया है। यूं तो इनके मालिक थाईलैंड और कंबोडिया से ऑपरेट कर रहे थे, लेकिन ठगी से आने वाले पैसे को मैनेज करने के लिए बेंगलुरु में पूरी कंपनी खड़ी कर रखी थी। इसने 100 से ज्यादा और फर्जी कंपनियां खोलीं, जिसके जरिए ठगी के पैसे को घुमाया जाता था। इस कंपनी द्वारा किए गए फ्रॉड की रकम अभी तक 3 हजार करोड़ तक पहुंच चुकी है। गिरोह गेमिंग प्लेटफॉर्म और इन्वेस्टिंग स्कीम के जरिए फ्रॉड कर रहा था। इस कंपनी के एक ही बैंक खाते को लेकर अब तक 5 हजार से ज्यादा शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं। लेकिन, बैंकों ने न तो इन शिकायतों का निस्तारण किया और न ही खाते को फ्रीज किया। पुलिस की पकड़ में आए कंपनी के दो सदस्यों से पूछताछ में ये खुलासे हुए हैं। पुलिस ने अब तक 26 फर्जी कंपनियों के खाते चेक किए हैं। केवल 4 कंपनियों के खातों में ही अब तक 400 करोड़ रु. के ट्रांजेक्शन हो चुके हैं। एक खाते के खिलाफ 5 हजार शिकायतें, पर फ्रीज नहीं हुआ ये कहानी शुरू होती है अप्रैल 2025 से। जब धौलपुर के बाड़ी थाने में एक शिक्षक ने अपने साथ हुए 15 लाख रुपए के फ्रॉड का मामला दर्ज कराया। पुलिस ने इसका इन्वेस्टिगेशन शुरू किया और ट्रांजेक्शन के रूट को फॉलो किया तो सैकड़ों खातों की परत खुलती गई। फिर सामने आई मूल कंपनी एबुंडेंस, जिसका हेडक्वार्टर बेंगलुरु में है। यह कंपनी ट्राई-पे नाम से पेमेंट एप चलाती है। इसके एक बड़े कॉर्पोरेट बैंक में चल रहे एक ही खाते के खिलाफ 1800 शिकायतें मिली हैं। जो बढ़ते-बढ़ते अब 5 हजार हो चुकी हैं। इसके बावजूद खाता अब तक फ्रीज नहीं किया गया है। पुलिस की गिरफ्त में आए कंपनी के एक डायरेक्टर रोहित श्रीवास्तव ने पूछताछ में बताया कि वह फर्जी कंपनियों के खातों में आए पैसे को मूल कंपनी के खाते में ट्रांसफर करता था, जो रकम हर दिन करीब एक करोड़ रुपए होती थी। जबकि, कंपनी को काम करते हुए 18 महीने से ज्यादा हो चुके हैं। कंपनियां खुलवाने और शिकायत मैनेज करने के लिए पूरा कॉर्पोरेट सिस्टम मुख्य कंपनी एबुंडेंस की शुरुआत रोहित दुबे और शशि सिंह ने की थी। और कंपनियां खुलवाने के लिए आदमी ढूंढ़ने से लेकर ऑफिस तैयार करने तक की अलग टीमें थीं। दो एप से करते थे फ्रॉड - ग्रुप ठगी के लिए केवल दो एप का इस्तेमाल करता था- टेलीग्राम व स्लैक। क्योंकि इन एप में किसी भी तरह से पहचान उजागर नहीं होती। विदेश में टीम लिंक भेज पेमेंट कराती थी, यहां फर्जी खातों में पैसे पहुंचाते थे पहली टीम थाईलैंड-कंबोडिया में - यहां से ठगी के शिकार को गेमिंग और इन्वेस्टिंग के जरिए ठगने वाली टीम बैठती है, जो शिकार को लिंक व पेमेंट के लिए क्यूआर कोड भेजती है। दूसरी टीम बेंगलुरु में - भुगतान भारत में ही हो सकता है। इसलिए, एक कंपनी खड़ी की गई। इसके जरिए 100 फर्जी कंपनियां खोलीं। वैरिफिकेशन करवाकर मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट और बैंक को संतुष्ट किया, खाते खुलवाए। ज्यादातर खाते पेमेंट बैंकों में खुले, जिसके जरिए क्यूआर कोड तैयार किया जाता। इन्हीं में ठगी का पैसा लिया जाता था। भारत के अंदर जो गैंग काम करता है, उसे चार हिस्सों में बांट दिया गया... 1. ऑनबोर्डिंग- एजेंट, जो फर्जी कंपनी और बैंक अकाउंट खुलवाते हैं। कंपनी का पैन कार्ड, सर्टिफिकेट ऑफ इनकॉर्पोरेशन, आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन, मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन, जीएसटी सर्टिफिकेट, करेंट अकाउंट, वेबसाइट, ऑफिस तैयार करवाते थे। 2.रीसेलर- यह टीम कागज वेरिफाई करती है। ऑफिस खुलवाने में मदद करती है। जहां बैंक वेरिफिकेशन नहीं हो पाता, वहां वेरिफिकेशन एजेंट को मैनेज करती। 3. टेक्निकल सपोर्ट- ये टीम क्यूआर कोड बनाने, लिंक जनरेट करने, ठगी की रकम ट्रांसफर करने के लिए शिकार को राजी करने का काम करती थी। 4. लीगल सपोर्ट - विवाद और सेटलमेंट के लिए भी एक टीम बनाई गई थी। इन्हें बनाया फर्जी डायरेक्टर; कच्ची बस्ती में घर...गार्ड की नौकरी और वो करोड़ों की कंपनी में निदेशक केस-1 - जिस कंपनी पर सबसे पहले जांच की गई, उसका नाम है रुकनैक। 6 माह का ही टर्नओवर 100 करोड़ है। हेडक्वार्टर दिल्ली के रोहिणी में है। इसके डायरेक्टर कुमकुम और दिनेश (पति-पत्नी) हैं। आईजी भरतपुर की टीम जब इनके घर पहुंची तो देखा कि कच्ची बस्ती के एक कमरे में दो बच्चों के साथ रह रहे थे। परिवार जमीन पर सोया था। इन्होंने बताया कि उन्हें तो महीने के 27 हजार रु. ही मिलते हैं। केस-2 - एक और कंपनी है जोविक, जिसका टर्नओवर 80 करोड़ रुपए है। इसकी एक डायरेक्टर शिवानी नाम की महिला फ्रॉड गैंग की कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड थी। "साइबर ठगी का यह गैंग कई राज्यों और देशों में फैला हुआ है तथा अभी तक के अनुसंधान में जितनी राशि का खुलासा हुआ है, यह स्कैम उससे कई गुना बड़ा हो सकता है। इसलिए पुलिस मुख्यालय को इसकी जांच किसी सक्षम राज्य या केंद्रीय एजेंसी से कराने का निवेदन किया गया है।" -राहुल प्रकाश, आईजी, भरतपुर रेंज

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