महोबा के रामनगर में रहने वाले मोची नंदू की कहानी स्मार्ट मीटर से जुड़ी परेशानियों को उजागर करती है। फुटपाथ पर बैठकर जूते-चप्पल की मरम्मत कर अपने पांच सदस्यीय परिवार का पेट पालने वाले नंदू रोजाना 100 से 200 रुपए कमाते हैं। नंदू के कच्चे मकान में सिर्फ दो एलईडी बल्ब और दो पंखे हैं। पुराने मीटर से उनका बिजली बिल 250 से 300 रुपए आता था। छह महीने पहले बिजली विभाग ने पुराना मीटर हटाकर स्मार्ट मीटर लगा दिया। कर्मचारियों ने कम बिल आने का भरोसा दिलाया था। लेकिन इसके विपरीत, बिल हर महीने बढ़कर 1000 रुपए तक पहुंच गया। नंदू को सरकारी योजनाओं में से केवल राशन का लाभ मिल रहा है। न तो आवास योजना, न शौचालय और न ही उज्जवला योजना का लाभ उन्हें मिला है। रोज की मजदूरी से परिवार का पेट पालने वाले नंदू के लिए 1000 रुपए का बिजली बिल भरना मुश्किल है। समाधान के लिए वह कई बार बिजली विभाग के चक्कर लगा चुके हैं। लेकिन कोई राहत नहीं मिली। अंत में उन्होंने जिला अधिकारी से गुहार लगाई है। नंदू की कहानी दर्शाती है कि कैसे डिजिटल इंडिया की पहल गरीब तबके के लिए चुनौती बन रही है।