यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने प्रदेश में आगामी विधान परिषद (MLC) चुनाव में 11 सीटों पर अकेले उतरने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा, स्नातक और शिक्षक एमएलसी चुनाव में कांग्रेस किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी। पहले पंचायत चुनाव और अब एमएलसी की 11 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर कांग्रेस क्या संदेश देना चाहती है? आखिर 2027 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस गठबंधन से क्यों परहेज कर रही है? कांग्रेस की रणनीति क्या है? पढ़ें ये स्टोरी… यूपी में कांग्रेस–सपा INDI गठबंधन के अहम साझेदार हैं। दोनों पार्टियों ने मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। सपा 2019 की तुलना में अपनी सीटों की संख्या 7 गुना बढ़ाकर 36 पर पहुंची तो कांग्रेस की सीटें भी छह गुना बढ़ गईं। मतलब दोनों पार्टियों को गठबंधन से जबरदस्त फायदा हुआ। गठबंधन में सपा 63 तो कांग्रेस 17 सीटों पर लड़ी थी। सपा 36 सीटें जीती, कांग्रेस को छह पर जीत मिली। कांग्रेस की सफलता की दर 35.29 और सपा की 57.17% रही। मतलब सपा की सफलता दर कांग्रेस की तुलना में ज्यादा थी। यूपी में इसी गठबंधन का कमाल था कि भाजपा खुद के बलबूते बहुमत नहीं जुटा पाई। इसकी टीस आज भी भाजपा काे सालती है। 2027 का विधानसभा चुनाव साथ लड़ने का ऐलान कर चुके हैं दोनों दल
लोकसभा में मिली सफलता के बाद से यूपी में सपा–कांग्रेस गठबंधन मजबूत बना हुआ है। गाहे–बगाहे कुछ बयानों को छोड़ दें तो दोनों पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में इस पर सहमति साफ दिखती है। वे सार्वजनिक मंचों से भी गठबंधन में ही चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं। अभी हाल ही में संसद के मानसून सत्र और यूपी के विधानसभा सत्र में भी दोनों दलों के नेताओं की जुगलबंदी सदन के अंदर और बाहर दिखी है। बिहार में एसआईआर (SIR) के मुद्दे पर कांग्रेस और सपा नेताओं, खासकर राहुल गांधी व अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी व डिम्पल यादव में गजब की केमिस्ट्री दिखी। पर सवाल है कि दोनों दलों के नेताओं के बीच इतनी शानदार समझ के बावजूद विधानसभा से पहले कांग्रेस क्यों पंचायत और एमएलसी चुनाव अलग लड़ना चाहती है? विधानसभा चुनाव में अधिक सीटों की सौदेबाजी की है रणनीति
वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम रिजवी, इसका जवाब देते हुए कहते हैं कि कांग्रेस की रणनीति विधानसभा चुनाव 2027 से पहले अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ाना है। वैसे भी एमएलसी चुनाव में सपा कभी शानदार प्रदर्शन नहीं कर पाती है। इस चुनाव का पूरा खेल वोटर लिस्ट का होता है। इसमें भाजपा और दूसरे निर्दलीय लोग माहिर हैं। कभी कांग्रेस का भी दबदबा रहता था। सपा की तुलना में आज भी कांग्रेस प्रयागराज, गोरखपुर, कानपुर, बनारस, गाजियाबाद, मेरठ में शिक्षक और स्नातक एमएलसी चुनाव में अच्छा कर सकती है। सपा कभी भी पढ़े–लिखे लोगों की पार्टी नहीं बन पाई। पढ़े–लिखे वोटरों ने कांग्रेस को हटाया तो भाजपा को पसंद किया। कांग्रेस को लगता है कि वो भाजपा को चुनौती दे सकती है। दूसरा वो एमएलसी और पंचायत चुनाव जीत कर विधानसभा चुनाव से पहले अपनी ताकत दिखाना चाहती है। तभी वह बारगेनिंग करने की हैसियत में होगी। 2029 लोकसभा चुनाव से पहले वैसे भी कांग्रेस के लिए कुछ भी यूपी में दांव जैसा नहीं लगा है। सपा के लिए 2027 का विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण है और वह गठबंधन सहयोगियों को कम से कम सीट देना चाहती है। कांग्रेस को यूपी उप चुनाव में झटका लग चुका है। तब उसे न तो मनचाही सीटें मिलीं और न ही उचित भागीदारी मिली। वह पश्चिम की मीरापुर और पूर्व की प्रयागराज या मऊ वाली सीट चाहती थी। लेकिन, सपा उसे गाजियाबाद और अलीगढ़ की खैर सीट दे रही थी। आखिर में कांग्रेस ने उप चुनाव लड़ने से मना कर दिया। सपा को उप चुनाव में इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। यहां तक कि प्रतिष्ठा वाली मिल्कीपुर भी वह हार गई। संगठन सृजन अभियान चलाकर बूथ मजबूत करने की तैयारी
कांग्रेस संगठन सृजन 100 दिन का अभियान चलाकर बूथ स्तर तक की तैयारी में जुटी है। वहीं जनहित के मुद्दों पर हर जिले में संगठन के लोग मुखर होकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस ने पहले ही पंचायत चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर रखी है। इसके लिए उसने टारगेट भी तय कर रखा है। पार्टी की ओर से कहा गया है कि संगठन सृजन अभियान में जो कार्यकर्ता अधिक से अधिक सदस्य बनाएगा, उसे पार्टी पंचायत चुनाव में मौका देगी। पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वालों के लिए विधानसभा चुनाव का भी मार्ग प्रशस्त रहेगा। मतलब पंचायत चुनाव जीतने वाले कई लोगों को विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी भी बना सकती है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग खासकर युवा पार्टी से जुड़ रहे हैं। कांग्रेस अलग–अलग प्रकोष्ठों के माध्यम से भी अपना जनाधार बढ़ाने में जुटी है। कांग्रेस ने प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों को तीन कैटेगरी में बांटा
कांग्रेस पहले ही प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों को तीन कैटेगरी में बांट कर तैयारी में जुटी है। ए श्रेणी में 200 सीटों को रखा है, जहां कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक मजबूत रहा है। इसमें ऐसी सीटें हैं, जहां पिछले तीन विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था। वहां कांग्रेस खास फोकस कर रही है। बी श्रेणी में 50 सीटें चिह्नित की हैं, जो पार्टी थोड़े प्रयास और बेहतर संगठन की बदौलत जीत सकती है। जबकि सी श्रेणी में 153 सीटें ऐसी हैं, जहां पार्टी बेहद कमजोर है। वहां गठबंधन और सामाजिक समीकरण व नए चेहरे को आगे रखकर कांग्रेस तैयारी कर रही है। हालांकि गठबंधन के लिए सपा से होने वाली बातचीत में पार्टी का फोकस ए श्रेणी वाली सीटों पर रहेगा। जहां पार्टी के लिए जीत की संभावना बेहतर होगी। बिहार चुनाव की तर्ज पर ही होगा यूपी में सपा–कांग्रेस का गठबंधन
वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं, कांग्रेस का लक्ष्य 2027 नहीं 2029 है। अभी कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी है कि उसका यूपी में अपना कोई जनाधार ही नहीं बचा है। यही कारण है कि पार्टी अपना संगठन मजबूत करने में जुटी है। कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के बयान से दो बातें स्पष्ट हैं कि 2027 का चुनाव वे साथ लड़ेंगे। उनका गठबंधन केवल विधानसभा के लिए है। उससे पहले पार्टी को मजबूत करने के लिए वो सब कुछ करेंगे। पंचायत और एमएलसी चुनाव अकेले लड़ने की उनकी घोषणा को अभी शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जाना चाहिए। जैसा कि भाजपा के सहयोगी दल भी इसी तरह का बयान दे चुके हैं। उनका ये कहना कि हमारा गठबंधन लोकसभा और विधानसभा के लिए है, ऐसा कह कर वो सपा को संकेत देना चाहते हैं कि पार्टी पूरी तरह से उनके सामने नतमस्तक नहीं है। खुद का आकलन करने के लिए कांग्रेस पंचायत चुनाव और एमएलसी चुनाव में अकेले लड़ना चाहती है। दोनों पार्टियां लंबे समय तक गठबंधन चलाना चाहती हैं, तो कांग्रेस और सपा दोनों एक–दूसरे को नाराज नहीं करना चाहेंगी। ऐसे में एमएलसी चुनाव में कुछ सीटों पर उनका समझौता हाे सकता है। बिहार चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर कांग्रेस ये संदेश देने की कोशिश करेगी कि राजनीतिक तौर पर उसकी ताकत बची है। कांग्रेस को अपने नेता राहुल गांधी को मजबूत दिखाने के लिए चुनावी प्रदर्शन दिखाना ही होगा। इसके बाद ही वह यूपी में सपा से बारगेनिंग करने की हैसियत में होगी। ------------------------ ये खबर भी पढ़ें.... पूजा पाल बोलीं- मेरी हत्या हुई तो अखिलेश जिम्मेदार होंगे:उन्हें विधवा का गुनाह दिखा, BJP को वोट देने वाली अपनी पत्नी का नहीं सपा से निकाले जाने के 9वें दिन विधायक पूजा पाल ने अखिलेश यादव को जवाब दिया है। पूजा पाल ने शुक्रवार को अपने X अकाउंट पर 2 पन्नों का लेटर पोस्ट किया। उन्होंने कहा, सपा में पिछड़े, अति पिछड़े और दलित सब दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। पहले दर्जे के नागरिक मुस्लिम हैं। वे चाहे जितने बड़े अपराधी हों, उनको सम्मान देना, ताकत देना, उनकी शक्ति बढ़ाना सपा की पहली प्राथमिकता है। मैंने बहुत प्रयास किया कि आप (अखिलेश यादव) हमारे पति के हत्यारों को सजा दिलाएंगे। लेकिन तमाम प्रयास के बावजूद सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। आपका अहंकार ही है कि एक विधवा अति पिछड़ी जाति की बेटी के भीतर आपको गुनाह दिखता है। BJP को वोट देने वाली पत्नी डिंपल का गुनाह नहीं दिखता। पढ़ें पूरी खबर