लखनऊ के संगीत नाटक अकादमी में तीन महत्वपूर्ण नाटकों का मंचन हुआ। डॉ. करुणा पांडे द्वारा लिखित नाटक 'नजीर' में एक अध्यापिका रागिनी के किरदार के माध्यम से समाज के दोहरे मापदंडों को दर्शाया गया। नाटक में यह सवाल उठाया गया कि बलात्कार जैसी घटनाओं में महिलाओं को ही क्यों दोषी ठहराया जाता है। पद्मश्री विद्या विन्दु सिंह की रचना 'पंख सा' में वैवाहिक जीवन की जटिलताओं को दर्शाया गया। नाटक में सुधा और उनके कवि पति प्रशांत के बीच आर्थिक तनाव और भावनात्मक संबंधों की कहानी है। प्रशांत अपनी पुरानी सहपाठी से मिलने जाता है, लेकिन अंत में उसे अपनी पत्नी का महत्व समझ आता है। नाटक का मंचन दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया कविता रॉय द्वारा लिखित 'अदृश्य निशान' में एक युवती की कहानी प्रस्तुत की गई। यह कहानी अतीत की यादों से जूझती एक लड़की के जीवन को दर्शाती है। नाटक में दिखाए गए दृश्यों ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया। तीनों नाटकों में नूतन वशिष्ठ, काव्या मिश्रा, मोनिका अग्रवाल, संगम बहुगुणा, अम्बरीश बॉबी, तुहिना मेहरा, मित्री दीक्षित, सोम गांगुली और शुभम कुमार दुबे ने शानदार अभिनय किया। इन नाटकों ने महिलाओं के दृष्टिकोण से समाज की वास्तविकता को प्रस्तुत किया।