चित्तौड़गढ़ (मेवाड़) के कृष्णधाम श्रीसांवलिया सेठ जी मंदिर को दान में मिली राशि ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। मंगलवार को केवल चार राउंड की गिनती में 36 करोड़ 13 लाख 60 हजार रुपए निकले हैं। 26 नवंबर को भी दान की गई राशि की गिनती जारी रहेगी। चेक, मनीऑर्डर और ऑनलाइन दान की राशि अभी जोड़ी ही नहीं गई है। इसलिए कुल राशि और बढ़ने की उम्मीद है। साल 2024 में दीपावली के बाद खोले गए 2 महीने के भंडार से 34 करोड़ 91 लाख 95 हजार 8 रुपए प्राप्त हुए थे। अब तक रिकॉर्ड दान राशि इसी को माना जाता है। मंदिर कमेटी के सदस्यों का कहना है कि इस बार दान राशि 40 करोड़ के आंकड़े को भी पार कर सकती है। चौथे राउंड में 8.15 करोड़
मंदिर मंडल के सदस्य पवन तिवारी ने बताया- मंगलवार सुबह राजभोग आरती के बाद फिर से भंडार की गिनती शुरू की गई। यह शाम तक चली। इस चौथे राउंड में 8 करोड़ 15 लाख 80 हजार रुपए की राशि निकली। यह राउंड सबसे अहम इसलिए रहा, क्योंकि इसी के साथ इस साल की दान राशि ने पिछले सभी सालों के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। 19 नवंबर को खुला भंडार
भंडार 19 नवंबर को खोला गया था। उसी दिन पहले राउंड की काउंटिंग की गई। इसमें 12 करोड़ 35 लाख रुपए प्राप्त हुए थे। 20 नवंबर को अमावस्या होने के कारण गिनती नहीं हो सकी। उसके बाद 21 नवंबर को दूसरा राउंड शुरू किया गया। इस राउंड की काउंटिंग में 8 करोड़ 54 लाख रुपए प्राप्त हुए। यह आंकड़ा भी पिछले सालों से ज्यादा रहा। 22 और 23 नवंबर को भीड़ ज्यादा होने के कारण काउंटिंग रोक दी गई थी। उसके बाद 24 नवंबर (सोमवार) को फिर से गिनती की गई। तीसरे राउंड में 7 करोड़ 8 लाख 80 हजार रुपए निकले। सिर्फ 4 राउंड में ही पिछले साल से ज्यादा राशि निकली
चारों राउंड की राशि को जोड़ने पर कुल 36 करोड़ 13 लाख 60 हजार रुपए बनते हैं। यह आंकड़ा पिछले साल की 2 महीने की कुल राशि 34 करोड़ 91 लाख 95 हजार 8 रुपए से ज्यादा है। इस बार भंडार दो महीने बाद खोला गया, इसलिए बढ़ा चढ़ावा
पुरानी परंपरा के अनुसार, दीपावली से एक दिन पहले आने वाली चतुर्दशी पर दान पेटियां नहीं खोली जातीं। इसके बाद अगले महीने अमावस्या से पहले होने वाली चतुर्दशी के दिन भंडार खोला जाता है। हर महीने खोले जाने वाले भंडार को इस बार दो महीने बाद खोला गया। ग्राफिक में समझिए सांवलिया सेठ मंदिर का इतिहास चबूतरे पर होती थी मूर्तियों की पूजा: 40 साल तक बागुंड के प्राकट्य स्थल पर ही एक चबूतरे पर तीनों मूर्तियों की पूजा की जाती रही। इसके बाद फिर भादसोड़ा के ग्रामीण एक मूर्ति को अपने गांव ले आए और एक केलुपोश मकान में स्थापित कर दिया। वहीं, एक मूर्ति मंडफिया लाई गई थी। तंवर बताते हैं- इन्हीं मूर्तियों में से एक मूर्ति के सीने पर पैर का निशान था। मान्यता है कि यह भृगु ऋषि के पैर हैं। अब पढ़िए- भृगु ऋषि से जुड़ी मान्यता इस मूर्ति पर जो चरण चिन्ह है, उसके पीछे एक कथा है। कथा के अनुसार, एक बार सभी ऋषियों ने मिलकर एक यज्ञ किया। विचार किया कि इस यज्ञ का फल ब्रह्मा, विष्णु या महेश, इनमें से किसे दिया जाए। निर्णय के लिए भृगु ऋषि को चुना गया। वे सबसे पहले भगवान विष्णु के पास पहुंचे, जो उस समय निंद्रा में थे और माता लक्ष्मी उनके चरण दबा रही थीं। भृगु ऋषि को यह लगा कि भगवान विष्णु उन्हें देखकर भी सोने का बहाना कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने क्रोधित होकर भगवान विष्णु के सीने पर लात मार दी। भगवान तुरंत उठे और ऋषि के पैर पकड़ लिए, क्षमा मांगते हुए बोले– मेरा शरीर कठोर है, कहीं आपके कोमल चरणों को चोट तो नहीं आई? भगवान की यह विनम्रता और सहनशीलता देखकर भृगु ऋषि ने उन्हें त्रिदेवों में श्रेष्ठ माना और यज्ञ का फल उन्हें ही समर्पित किया। सिर्फ 10 मिनट के लिए होते हैं दर्शन तंवर बताते हैं- इस अनूठी मूर्ति के चरण चिन्ह के दर्शन करना भी अनूठा है। इसके दर्शन केवल भक्तों को 10 मिनट के लिए होते हैं। इसके लिए सुबह 4.50 बजे से 5 बजे तक का समय रखा गया है। इसके बाद इन चरण चिन्ह को भगवान के वस्त्रों से ढक दिया जाता है। यह विशेषता देश-दुनियाभर में किसी अन्य मूर्ति में नहीं पाई जाती, जिससे यह मूर्ति और भी विशेष बन जाती है। विवाह की पहली पत्रिका भी पहले ठाकुर जी को अर्पित की जाती है। लोग मानते हैं कि इनका आशीर्वाद लेने के बाद ही कोई भी कार्य सफल होता है। इस बड़ी मूर्ति में ही ठाकुर जी के चरणों के दर्शन संभव हैं। अन्य 2 मूर्तियों में यह सुविधा नहीं है। पूरा भगत के अनुरोध पर हुआ था जीर्णोद्धार तंवर बताते हैं- इस मंदिर का वर्तमान ढांचा करीब 3000 स्क्वायर फीट क्षेत्र में फैला हुआ है। मंदिर पहले गांव के एक केलूपोश मकान में था, जिसे बाद में भिंडर रियासत के राजा मदन सिंह भिंडर ने जीर्णोद्धार करवाया। इसके पीछे भी एक रोचक कथा है। राजा मदन सिंह एक बार बेट द्वारका में नाव यात्रा कर रहे थे। यात्रा के दौरान नाव बीच समंदर में फंस गई। नाव में मौजूद लोगों ने पूरा भगत की जय का उद्घोष किया, जिससे नाव डूबने से बच गई। इस चमत्कार के पीछे का रहस्य जानने पर राजा को पता चला कि पूरा भगत भादसोड़ा गांव के निवासी है। इसके बाद राजा ने पूरा भगत से मुलाकात की और उनकी इच्छा अनुसार मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। इस तरह के मिलते हैं उपहार... --- राजस्थान के सांवलिया सेठ के भंडार की यह खबर भी पढ़िए... सांवलिया सेठ के भंडार से निकले 35 करोड़ रुपए, 2 किलो से ज्यादा सोना और 188 किलो चांदी मिली चित्तौड़गढ़ के सांवलिया सेठ मंदिर में इस बार दान का रिकॉर्ड बना है। दो महीने में सांवरा सेठ मंदिर में करीब 35 करोड़ रुपए का दान मिला है। पूरी खबर पढ़िए