संभल की पौराणिक 24 कोसीय परिक्रमा की सभी तैयारियां पूरी हो गई हैं। यह परिक्रमा 25 और 26 अक्टूबर को आयोजित होगी। श्रीवंशगोपाल तीर्थ से शुरू होकर यहीं परिक्रमा का समापन होगा। धार्मिक मान्यता है कि इस परिक्रमा से संतान सुख और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह परिक्रमा क्षेत्र की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक भी मानी जाती है। परिक्रमा मार्ग संभल के गांव बैनीपुरचक स्थित श्रीवंशगोपाल तीर्थ से शुरू होकर भुवनेश्वर, क्षेमनाथ और चंदेश्वर होते हुए वापस वंशगोपाल तक आता है। 52 किलोमीटर लंबे इस मार्ग की साफ-सफाई कराई गई है और बारिश से खराब हुए हिस्सों को ठीक किया गया है। ब्लॉक संभल, पंवासा और नगर पालिका परिषद संभल के अधिकारी तैयारियों में लगे हुए हैं। जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र पेंसिया ने बताया कि संभल में समलेश्वरी, भुवनेश्वर और चंदेश्वर तीर्थों के बीच कुल 87 देवतीर्थ स्थित हैं। यह वार्षिक परिक्रमा दीपावली के चार दिन बाद आयोजित होती है। प्रशासन ने श्रद्धालुओं के लिए चार मोबाइल टॉयलेट, दो पानी के टैंकर, जेसीबी, डस्टबिन और सफाई वाहनों की व्यवस्था की है। कच्चे रास्तों को समतल कर दिशा संकेतक लगाए गए हैं। सुरक्षा व्यवस्था के लिए 39 चौकियां बनाई गई हैं, जहां पुलिस बल के साथ मजिस्ट्रेट भी तैनात रहेंगे। वंशगोपाल तीर्थ के प्रमुख भगवत प्रिय के अनुसार, परिक्रमा चतुर्थी को मंदिर से शुरू होकर पंचमी को यहीं समाप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर ने 68 तीर्थों के दर्शन से पुण्य मिलने की बात कही थी। यह परिक्रमा हजारों वर्षों से चली आ रही है, जो कुछ समय के लिए बंद होने के बाद फिर से शुरू हुई है। इस वर्ष परिक्रमा में 25 से 50 हजार श्रद्धालुओं के शामिल होने का अनुमान है, जबकि पूरे साल में 5 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन और परिक्रमा के लिए आते हैं। वंशगोपाल तीर्थ की धार्मिक मान्यता संभल के गांव बेनीपुर चक का श्रीवंशगोपाल तीर्थ पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा है। कहा जाता है कि 5200 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण कर यहीं आए थे, तीर्थ परिसर में आज भी वह कदंब का पेड़ मौजूद है जिसके नीचे भगवान श्रीकृष्ण ने एक रात विश्राम किया था। ब्रह्माजी के आदेश पर भगवान विश्वकर्मा ने यहां का प्राचीन मंदिर बनवाया था, संतान की इच्छा से यहां पूजा करने पर वंशवृद्धि होती है, इसी कारण इसे वंशगोपाल तीर्थ कहा जाता है।