नीचे लगी इस तस्वीर को देखिए। यह सीतापुर जिले के शुक्लपुरवा गांव की है। गांव की आबादी करीब 7 हजार की है। आधे से ज्यादा लोगों के घर नदी में समा चुके हैं। ये छप्परनुमा घर भी 1-2 दिन में नदी में समा जाएगा। सास-ससुर छप्पर के नीचे हैं, इसलिए बहू बाहर छाता लगाकर बैठी है। छप्पर नदी में बह जाने के बाद ये लोग नई जगह ऐसे ही छप्पर बनाएंगे और उसमें अपने दिन काटेंगे। यह इकलौता मामला नहीं है। ऐसे ही सैकड़ों मामले नदी में समा गए हैं। लोग बेबस हैं और लाचार भी। अपना छप्पर एक जगह से दूसरी लेकर जा रहे। जो लोग बाहर कमाने गए थे, वो घर लौट आए हैं। बच्चों के स्कूल बह गए, तो उनकी पढ़ाई भी रुक गई। प्रशासन अपने स्तर पर राहत पहुंचाने की कोशिश कर रहा, लेकिन उसकी मदद भी यहां नाकाफी साबित हो रही। दैनिक भास्कर की टीम इस इलाके में पहुंची। जो हालात दिखे वो डरावने थे... गांव तक पहुंचने के लिए 2 बार नाव पकड़नी होगी
सीतापुर जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर रामपुर मथुरा ब्लॉक है। यहां से करीब 6 किलोमीटर दूर शुक्लपुरवा गांव है। हमारी टीम यहां के लिए निकली। 3 किलोमीटर चले। इसके आगे जो रास्ता था, वह नदी में डूबा हुआ था। हम नाव से दूसरी तरफ पहुंचे। 2 किलोमीटर और चलने के बाद हमने फिर से नाव पकड़ी और गांव पहुंचे। यहां से आगे जाने के लिए जो कच्चा रास्ता था, वह पूरी तरह से दलदल में बदल गया था। 2 बार नाव और फिर इस दलदल से गुजरकर गांव के लोग रोज अपने घर पहुंचते हैं। हम गांव की तरफ आगे बढ़े, तो कुछ लोग अपने सिर पर झोपड़ी के हिस्सों को टांगे आते दिखे। असल में जहां इनका घर था, वह कट गया था। अब धान के खेत में झोपड़ी बनाने जा रहे थे। इन्हीं में से एक स्वामी लाल कहते हैं- नदी की कटान में मेरा घर चला गया। अब गांव के ही एक व्यक्ति ने अपने धान के खेत में थोड़ी सी जगह दे दी है। यहां झोपड़ी बनाने के बाद हमारे पास कम से कम अपने सामान को रखने की एक व्यवस्था हो गई। अब 1-2 महीना यहीं रहेंगे, फिर कहीं अपनी व्यवस्था बनाएंगे। स्वामी लाल कहते हैं- बांध के दूसरी तरफ तमाम सरकारी जमीन है। सरकार चाहे तो हमें बसा सकती है। हमारे पूरे गांव को वहां बसा सकती है। लेकिन सुनता कहां कौन है? अधिकारी सुनते नहीं, हमारी तो सत्ता और पावर भी नहीं है। लेखपाल-अधिकारी हमारी मदद कर सकते हैं, लेकिन वह कर ही नहीं रहे। लगता है कि बच्चों को बांधकर साथ में नदी में कूद जाऊं
हम गांव के एक छोर पर पहुंचे। यहां लोग अपने घरों को समेट रहे थे। 50 साल की कुंती मिलीं। वह बताती हैं- हमने सारा सामान यहां लाकर रखा है, आगे कहीं और लेकर जाएंगे। जहां भी जाते हैं, वहां के लोग हमें भगाने लगाते हैं। आखिर हम कहां चले जाएं? जब कहीं जगह ही नहीं है, तो फिर क्या करें। सरकार तो हमें एक बिस्वा जमीन नहीं देती, कहीं कोई व्यवस्था नहीं है। पास खड़ी सरोजनी देवी कहती हैं- हमारा मकान भी बाढ़ में गिर गया। प्रधान-लेखपाल इधर कभी आते ही नहीं। कुछ दिन पहले एक छोटा बच्चा नदी में गिर गया था, किसी तरह से उसे बचाया गया। अब हम बच्चे बचाएं या घर बचाएं। यहां कोई ठिकाना ही नहीं है। इतना कहते हुए सरोजनी भावुक हो जाती हैं। उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। 3 साल पहले पीएम आवास बनवाया, अब बह जाएगा
शुक्लपुरवा ग्राम पंचायत में कई पुरवा हैं। इसी में से एक लोधन पुरवा लगभग कटान में चला गया है। 2 घर बचे हैं। इसमें एक प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बना है। इसे राजेश कुमार ने 3 साल पहले बनाया था। उस वक्त नदी का किनारा 2 किलोमीटर दूर था। राजेश कहते हैं- हम यहीं पैदा हुए, यहीं पले-बढ़े। पहले नदी के बीच घर था, वह कट गया तो यहां आकर बस गए थे। 3 साल पहले पीएम आवास मिल गया था, लेकिन अब यह भी कटने वाला है। यह सब देखकर डर लगता है, लेकिन हम कहां चले जाएं? 3 बच्चे हैं, वह भी जिस स्कूल में जाते थे, वह भी कट गया। अब झोपड़ी उठाकर ले जाएंगे और ऐसे ही रहेंगे। पास खड़ी अंजू कहती हैं- नदी का कटान रोज बढ़ रहा है। 4-5 साल से यहीं रह रहे थे, लेकिन अब यहां भी नहीं रह पाएंगे। अब कहीं मड़इया ले जाएंगे। परेशानियां तो इतनी हैं, लेकिन करें क्या, कहें किससे? स्कूल बह गया, बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी
इस गांव में एक अपर प्राइमरी स्कूल था। वह भी पिछले हफ्ते कटान में चला गया। गांव के करीब 100 बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते थे। अब स्कूल बंद हो जाने से इन बच्चों की पढ़ाई ठप हो गई। 8वीं में पढ़ने वाली पुष्पा कहती है- यहां स्कूल था तो हम लोग जाते थे, लेकिन अब वह कट गया। दूसरा स्कूल यहां से दूर है, इसलिए अब कोई स्कूल नहीं जाता। सभी यहीं रहकर पढ़ाई करते हैं। इसी स्कूल में 8वीं तक की पढ़ाई करने वाली मीना कुमारी अब करीब 14 किलोमीटर दूर एक सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती है। मीना कहती है- मेरा घर 14 साल में 8 बार कट चुका है। पहले हमारा घर सुंदरपुरैना में था, अब लोधनपुर में आ गया है। अब देखते हैं, कहां ठिकाना बनता है। 3 महीने तक ऐसे ही भटकते रहते हैं यहां के लोग
नाव के जरिए हमारी टीम को गांव तक सूर्य प्रकाश ने पहुंचाया। वह कहते हैं- यहां की जो स्थिति है, वह 15 जून से लेकर अक्टूबर तक ऐसे ही रहती है। इस दौरान यहां कोई बीमार हो जाए, तो उसके लिए एंबुलेंस नहीं आ सकती। पास में रामपुर मथुरा बाजार है। वहां तक पहुंचने के लिए भी 2-3 घंटे का वक्त लगता है। नाव ही एकमात्र सहारा है। अगर नाव न हो, तो यहां के लोगों का जीवन ही एकदम कठिन हो जाएगा। हमने सूर्य प्रकाश से पूछा कि यहां के लोगों के लिए प्रशासन को क्या कुछ करना चाहिए, जिससे इनका जीवन आसान हो जाए? वह कहते हैं- तराई क्षेत्र में जितने लोग हैं, उन सबको बांध के दूसरी तरफ घर बनाने के लिए जमीन दिया जाना चाहिए। जिससे वो अपना घर बना सकें। जिनके खेत गए हैं, उन्हें भी राहत के तौर पर जमीन दी जाए। यहां घर कटने वाले लोगों की संख्या पिछले कुछ साल में 400-500 से ज्यादा हो गई है। प्रधानपति बोले- प्रशासन और सरकार मदद कर रही
हम गांव में प्रधानपति श्रीराम से मिले। वह भी लगातार गांव में पीड़ित लोगों की मदद कर रहे हैं। श्रीराम कहते हैं- कटान तो बहुत वक्त से हो रही, बीच-बीच में रुक जाती है। हम लोग इन सबके लिए स्थायी व्यवस्था कर रहे हैं। लेकिन, अभी ये लोग जाने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि इनके पास इतना सारा सामान है। वो इसे यहां से ले नहीं जा पाएंगे। इसलिए इधर-उधर कहीं भी घर बना ले रहे हैं। शुक्लपुरवा के अलावा, अखरी, सुंदर पुरवा, रामरूप पुरवा, छोटे पुरवा, महाजनपुरवा भी इस वक्त कटान से प्रभावित हैं। नदी की धार इतनी तेज है कि कई बार एक-एक दिन में ही 20 फीट से ज्यादा जमीन को अपनी जद में ले ले रही। शुरुआत में यहां लोगों को पैक्ड फूड मिलते थे, लेकिन अब सिर्फ राशन मिल रहा। अधिकारी बीच-बीच में आते हैं, लेकिन वो गांव के बाहर से ही देखकर चले जाते हैं। यहां के लोगों को आश्वासन खूब मिले, लेकिन मदद नाममात्र की। करीब 10 हजार की आबादी खानाबदोश बन गई है। अपने खेत गंवाने के बाद वह अब हर साल अपने घर को उठा-उठाकर नदी से दूर बनाते हैं। स्थायी ठिकाना आज तक नहीं मिल सका। -------------------------- ये खबर भी पढ़ें... यूपी में सितंबर में भी होगी अगस्त जैसी बारिश, मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान यूपी में इस मानसून सीजन कोटे से सिर्फ 2 फीसदी कम बारिश हुई। 1 जून से लेकर 30 अगस्त तक 575 मिमी बारिश हुई, जबकि अनुमान 588.1 मिमी था। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार कोटे से अधिक बारिश होगी। पढ़िए पूरी खबर...